गझल |
कणसूर |
विसुनाना |
गझल |
चालतो ऐसा जणू .... |
ह बा |
गझल |
तिथे ये पहाटे... |
ह बा |
गझल |
सुखाच्या सर्व व्याख्यांना जरा बदलून पाहू या! |
बहर |
गझल |
आरसा पाहायचा राहून गेला |
निलेश कालुवाला |
गझल |
हा शब्दांच्या गुणसूत्रांचा दोष असावा |
अनिरुद्ध अभ्यंकर |
गझल |
उगीच का प्राण.... |
अजय अनंत जोशी |
गझल |
'' शेवटी '' |
कैलास |
गझल |
किती सोपे मला हे प्रेम करणे वाटले होते... |
बहर |
गझल |
'' कैलास '' |
कैलास |
गझल |
प्रदेश... |
प्रदीप कुलकर्णी |
गझल |
ती स्वप्नसुंदरी |
गंगाधर मुटे |
गझल |
असे नव्हे |
मिल्या |
गझल |
पराक्रमी असा मी |
गंगाधर मुटे |
गझल |
माझ्या मनात थोडे... |
केदार पाटणकर |
गझल |
टोचले होते.. |
अजय अनंत जोशी |
गझल |
आसवे आता न केवळ गाळती माझे नयन |
कैलास |
गझल |
कधी स्वतःच्या ... |
अजय अनंत जोशी |
गझललेख |
शे(अ)रो शायरी, भाग-५ : दोस्ती से दुश्मनी शरमाई रहती है |
मानस६ |
गझल |
शंकर रामाणींची गझल |
जयन्ता५२ |
गझल |
अंगार चित्तवेधी |
गंगाधर मुटे |
गझल |
ही सरिता रुसली आज किनाऱ्यावरती... |
मानस६ |
गझल |
वाटते बोलायचे राहून गेले |
कैलास |
गझल |
आज अचानक तुझी आठवण का यावी |
अनिरुद्ध अभ्यंकर |
गझल |
खुळा साज आहे.. |
बहर |