गझल |
''जीवन अंधारातच आहे'' |
कैलास |
गझल |
बघ कशा संवेदना गातात माझ्या |
मयुरेश साने |
गझल |
...पण सुरूच आहे रहदारी ! |
प्रदीप कुलकर्णी |
गझल |
... स्मरण असावे |
अजय अनंत जोशी |
गझल |
दु:ख सुद्धा माणसे पाहून येते |
मिल्या |
गझल |
अर्थ आहे |
क्रान्ति |
गझल |
दे चार श्वास दे रे .. |
शाम |
गझल |
पेटत्या वातीच माळू |
अनिल रत्नाकर |
गझल |
शहर झाले चांदण्याचे |
चित्तरंजन भट |
गझल |
म्हटले होते |
क्रान्ति |
गझल |
'व्यथा'....(गझल) |
mamata.riyaj@gm... |
गझल |
मी एकटीच येथे!!!(गझल). |
supriya.jadhav7 |
गझल |
फीतूर .... |
कविता मोकाशी |
गझल |
''वाटतो जरी प्रसन्न मी वरुन'' |
कैलास |
गझल |
एक होऊ या क्षणी |
केदार पाटणकर |
गझल |
....सारे मला मिळाले !!! (गझल). |
supriya.jadhav7 |
गझल |
खुशाली |
आनंदयात्री |
गझललेख |
शे(अ)रो शायरी, भाग-७ : वो लब कि जैसे सागर-ए-सहबा दिखाई दे |
मानस६ |
गझल |
चेहरा दे कोणताही बाटतो का आरसा ? ........... |
मयुरेश साने |
गझल |
बहरता बहरता..... |
ह बा |
पृष्ठ |
नशा |
सदानंद डबीर |
गझल |
कोजागिरी !!! |
supriya.jadhav7 |
गझल |
रात्र झाली फ़ार आता !!! |
supriya.jadhav7 |
गझल |
चुंबिण्या येऊ नको तू |
मयुरेश साने |
गझल |
सांगू कसे...?(गझल) |
mamata.riyaj@gm... |