गझल |
पडल्यापडल्या जागोजागी उसवत आहे |
विजय दि. पाटील |
मंगळ, 29/03/2011 - 13:20 |
गझल |
पुन्हा केव्हातरी बोलू... |
रुपेश देशमुख |
सोम, 28/03/2011 - 20:48 |
गझल |
काय आहे तुझ्याकडे माझे |
बेफिकीर |
सोम, 28/03/2011 - 17:44 |
गझल |
''वाटत आहे'' |
कैलास |
शुक्र, 25/03/2011 - 13:06 |
गझल |
अचाट तारे तोडत होता |
अनिल रत्नाकर |
शुक्र, 25/03/2011 - 00:02 |
गझल |
इथे माझा ॠतू आहे इथे राहू नका कोणी... |
मयुरेश साने |
बुध, 23/03/2011 - 23:55 |
गझल |
पांढरा किडा |
गंगाधर मुटे |
मंगळ, 22/03/2011 - 19:49 |
गझल |
म्हणालो त्यातले काहीच मी करणार नाही |
विजय दि. पाटील |
सोम, 21/03/2011 - 11:04 |
गझल |
पाऊल वळले... |
अजय अनंत जोशी |
रवि, 20/03/2011 - 21:24 |
गझललेख |
शे(अ)रो-शायरी, भाग-९ : टूटी है मेरी नींद मगर तुमको इससे क्या |
मानस६ |
शुक्र, 18/03/2011 - 09:35 |
गझल |
कुणाशी बोलता आहात याची कल्पना आहे? |
बेफिकीर |
सोम, 14/03/2011 - 22:07 |
गझल |
''जमले'' |
कैलास |
रवि, 13/03/2011 - 19:07 |
गझल |
नव्या यमांची नवीन भाषा |
गंगाधर मुटे |
रवि, 13/03/2011 - 08:45 |
गझल |
मी जिथे नाही अशी जागाच नाही |
बेफिकीर |
शनि, 12/03/2011 - 09:50 |
गझल |
तू भेटली नव्हतीस तोवर |
मिल्या |
बुध, 09/03/2011 - 11:12 |
गझल |
मनात माझ्या कुठून येते बरेच काही? |
विजय दि. पाटील |
रवि, 06/03/2011 - 12:20 |
गझल |
रुढी परंपरेचा का बांधलास शेला? |
विद्यानंद हाडके |
रवि, 06/03/2011 - 08:36 |
गझल |
............. अजून काही |
विशाल कुलकर्णी |
गुरु, 03/03/2011 - 11:11 |
गझल |
लाथाडती सारे मला |
अनिल रत्नाकर |
गुरु, 03/03/2011 - 00:44 |
गझल |
सोयरा |
क्रान्ति |
बुध, 02/03/2011 - 22:24 |
गझल |
लगान एकदा तरी..... (हझल?) |
गंगाधर मुटे |
बुध, 02/03/2011 - 18:31 |
गझल |
हो गझल गैरमुसलसल आता.. |
बेफिकीर |
सोम, 28/02/2011 - 19:36 |
गझल |
एकदा तरी |
मिल्या |
सोम, 28/02/2011 - 18:48 |
गझल |
कधी कधी |
केदार पाटणकर |
शुक्र, 25/02/2011 - 15:31 |
गझल |
जखमेस ओल आली.... |
निरज कुलकर्णी |
बुध, 23/02/2011 - 14:49 |