गझल |
तुझे आच्छादलेले जग मला सांगून जाते |
बेफिकीर |
सोम, 07/07/2014 - 01:25 |
गझल |
भलतीच मर्यादीत ह्यांची झेप आहे |
बेफिकीर |
गुरु, 26/06/2014 - 23:48 |
गझललेख |
ज्योत छोटीशी जरी.. रसग्रहण |
केदार पाटणकर |
मंगळ, 24/06/2014 - 15:25 |
गझल |
एवढे नसते जलद आयुष्य सरण्यासारखे! |
प्रोफेसर |
शुक्र, 20/06/2014 - 15:13 |
गझल |
कशाचा शोध काही घेत नसतो |
चित्तरंजन भट |
मंगळ, 17/06/2014 - 23:47 |
गझल |
माझ्यातला चांगुलपणा वर आण तू |
बेफिकीर |
मंगळ, 17/06/2014 - 22:18 |
गझल |
आई मेंढ्या हाकत आहे, बाप दिवंगत आहे |
बेफिकीर |
बुध, 11/06/2014 - 17:30 |
गझल |
गझल |
अनंत ढवळे |
बुध, 11/06/2014 - 07:11 |
गझल |
वर्तुळे |
विजय दि. पाटील |
मंगळ, 03/06/2014 - 15:18 |
गझल |
काही नवीन सुट्टे शेरः |
बेफिकीर |
सोम, 02/06/2014 - 21:18 |
गझललेख |
आपले रडणे....एक रसग्रहण |
केदार पाटणकर |
शनि, 24/05/2014 - 14:08 |
गझल |
संवेदनशिल विषयांना बाजार बनविले जाते |
शुभानन चिंचकर |
शुक्र, 09/05/2014 - 14:17 |
गझल |
एकटा सागरकिनारा एकटा |
चित्तरंजन भट |
शुक्र, 09/05/2014 - 13:27 |
गझल |
चोर |
कैलास |
बुध, 30/04/2014 - 09:54 |
गझल |
काय नभाची आहे इच्छा पाहू... |
वैभव देशमुख |
शनि, 19/04/2014 - 14:59 |
गझल |
हुंदका उरातच गोठवायचा आहे |
वैभव वसंतराव कु... |
गुरु, 17/04/2014 - 22:03 |
गझल |
नीट वाच...! |
प्रदीप कुलकर्णी |
मंगळ, 15/04/2014 - 21:03 |
गझल |
विषारी केव्हढे वातावरण आहे |
चित्तरंजन भट |
मंगळ, 15/04/2014 - 17:26 |
गझल |
"दारू" |
कैलास |
गुरु, 27/03/2014 - 22:41 |
गझल |
किती? |
केदार पाटणकर |
बुध, 26/03/2014 - 15:16 |
गझल |
बोचरे वारे |
विजय दि. पाटील |
बुध, 19/03/2014 - 14:30 |
गझल |
हाक |
प्रदीप कुलकर्णी |
शुक्र, 14/03/2014 - 20:45 |
गझल |
पाहिले चालून त्याच्या सोबतीने |
बेफिकीर |
गुरु, 13/03/2014 - 13:13 |
गझल |
आकडेवारी |
केदार पाटणकर |
गुरु, 27/02/2014 - 14:22 |
गझल |
मी काही स्वप्नांच्या नुसता सोबत बसतो |
प्रसाद लिमये |
बुध, 08/01/2014 - 19:55 |