कार्यक्रम |
काव्यरसिक मंडळ (डोंबिवली) ४४वे वार्षिक स्नेहसंमेलन, रविवार दि. १४ फेब्रुवारी २०१० |
जयन्ता५२ |
गझल |
'जग मल्लीकाचे आहे' - कवी ज्ञानेशची फर्माईश! |
गंभीर समीक्षा |
गझल |
नूर |
कुमार जावडेकर |
गझल |
थांबणे सोसेल तोवर लागते चालायला.... |
मयुरेश साने |
गझल |
गावाला आलो की..... |
विजय दि. पाटील |
गझल |
अबोला गाजला होता |
मयुरेश साने |
गझल |
'वस्ती' |
अभिषेक उदावंत |
पृष्ठ |
चाललेला ! |
श्रावण |
गझल |
मिळते कोठे ? |
कौतुक शिरोडकर |
कार्यक्रम |
ऑनलाईन गझल मुशायरा |
मिल्या |
गझल |
कितीदा |
कौतुक शिरोडकर |
गझल |
एवढे नसते जलद आयुष्य सरण्यासारखे! |
प्रोफेसर |
गझल |
क्षण तो सोसाट्याचा होता |
वैभव देशमुख |
गझल |
काळज्या |
भूषण कटककर |
गझल |
क्षणांची मीलने |
बेफिकीर |
गझल |
दूरचा किनारा |
योगेश्वर रच्चा |
गझल |
गझल |
मयुरेश साने |
गझल |
खून केले... |
निरज कुलकर्णी |
गझल |
... तुरुंग सारे! |
गिरीश कुलकर्णी |
गझल |
दवबिंदू |
योगेश्वर रच्चा |
कार्यक्रम |
सस्नेह आमंत्रण - गझल सहयोगचा मुशायरा - हे गाव आपल्यांचे |
बेफिकीर |
गझल |
हवे हवे ते घडतच नाही, घडू नये ते घडून गेले |
मयुरेश साने |
गझललेख |
गालिब बेनकाब |
बेफिकीर |
गझल |
नूर... |
भूषण कटककर |
गझल |
मावळाया लागलो |
निशिकांत दे |