गझल |
हास आयुष्या |
क्रान्ति |
गझल |
नकोशी |
क्रान्ति |
गझल |
अलिप्त |
क्रान्ति |
गझल |
सुकावे लागले |
क्रान्ति |
गझल |
काव्य जगावे |
क्रान्ति |
गझल |
मनाला |
क्रान्ति |
गझल |
भाव |
क्रान्ति |
गझल |
किती सुखाचे असेल |
क्रान्ति |
गझल |
समर्थ |
क्रान्ति |
गझल |
बंडखोरी |
क्रान्ति |
गझल |
वेळिअवेळी |
क्रान्ति |
गझल |
कुठे तरी काही तरी जळत होते ..... |
खलिश |
गझल |
ग झ ल : तू कधी स्वप्नात माझ्या येशील का ? ..... |
खलिश |
गझल |
चुंबने घेउनी जे तुला बोचले.... |
खलिश |
गझल |
मी फुलांची मूक भाषा जाणतो..... |
खलिश |
गझल |
बहरली मनाची कधी बाग साधी ? |
खलिश |
गझल |
मला माझ्या गुन्ह्याची फार मोठी स ज़ा झाली .... |
खलिश |
गझल |
ग झ ल : रात्र थोडी गार होती ..... |
खलिश |
गझल |
ग झ ल : मला का तो वियोगाची व्यथा देतो ? |
खलिश |
गझल |
फुलानां स्वप्नात ही काटे बोचले ..... |
खलिश |
गझल |
ग झ ल : ७ (अ) : दुरूस्त आणी पुनः संपादित : मला तो का वियोगाची व्यथा देतो ? |
खलिश |
गझल |
गझल : हात माझ्या काळ्जाला लावू नको..... |
खलिश |
गझल |
गझल - ६.(ब) : साकी मला तू असा, गळका जाम देऊ नको : दुरूस्त आणी पुनः संपादित |
खलिश |
गझल |
आज ही वेदना दार ठोठावते..... |
खलिश |
गझल |
ह्या मनाचे, दुश्मनाचे काय करावे ?.... |
खलिश |