गझल |
नवे ऋतू |
क्रान्ति |
गझल |
अंतरा |
क्रान्ति |
गझल |
नको तेच झाले |
क्रान्ति |
गझल |
मनासारखे |
क्रान्ति |
गझल |
न्यास |
क्रान्ति |
गझल |
नकोशी |
क्रान्ति |
गझल |
हास आयुष्या |
क्रान्ति |
गझल |
सुकावे लागले |
क्रान्ति |
गझल |
काव्य जगावे |
क्रान्ति |
गझल |
मैफल |
क्रान्ति |
गझल |
मनाला |
क्रान्ति |
गझल |
ग झ ल : ७ (अ) : दुरूस्त आणी पुनः संपादित : मला तो का वियोगाची व्यथा देतो ? |
खलिश |
गझल |
गझल - ६.(ब) : साकी मला तू असा, गळका जाम देऊ नको : दुरूस्त आणी पुनः संपादित |
खलिश |
गझल |
गझल : हात माझ्या काळ्जाला लावू नको..... |
खलिश |
गझल |
हात माझे फुलांनी ही पोळले होते..... |
खलिश |
गझल |
गझल : मी तुझ्या प्रेमात आहे, तू मला ही प्रेम कर...... |
खलिश |
गझल |
गझल : रात्र सारी चांदण्याने दु:खः माझे पाहिले - पु नः संपादित |
खलिश |
गझल |
कुठे तरी काही तरी जळत होते ..... |
खलिश |
गझल |
साकी मला तू असा, गळका जाम देऊ नको |
खलिश |
गझल |
चुंबने घेउनी जे तुला बोचले.... |
खलिश |
गझल |
मी फुलांची मूक भाषा जाणतो..... |
खलिश |
गझल |
ग झ ल : तू कधी स्वप्नात माझ्या येशील का ? ..... |
खलिश |
गझल |
आज ही वेदना दार ठोठावते..... |
खलिश |
गझल |
ह्या मनाचे, दुश्मनाचे काय करावे ?.... |
खलिश |
गझल |
हवे मधे किती छान गारवा होता..... |
खलिश |