गझल |
तुझे आच्छादलेले जग मला सांगून जाते |
बेफिकीर |
गझल |
ग झ ल : ७ (अ) : दुरूस्त आणी पुनः संपादित : मला तो का वियोगाची व्यथा देतो ? |
खलिश |
गझल |
वाहते का ? हवाच आहे की ! |
चित्तरंजन भट |
गझल |
माझी आई |
ह बा |
गझल |
कसेबसे |
योगेश वैद्य |
गझल |
वराकडील मानपान |
भूषण कटककर |
गझल |
झेलू |
अनिल रत्नाकर |
गझल |
रुढी परंपरेचा का बांधलास शेला? |
विद्यानंद हाडके |
गझल |
आपण दोघे |
रुपेश देशमुख |
गझल |
ओल |
पुलस्ति |
गझल |
छळतो अजूनही का |
जयश्री अंबासकर |
गझल |
हे फुलांचे उधान झाडांना... |
वैभव देशमुख |
गझल |
गोल फक्त हा सजीव ठेवला असेल तर? |
बेफिकीर |
गझल |
सोशीक |
मी अभिजीत |
गझल |
मी ही तुझ्यात आहे |
अजय अनंत जोशी |
गझल |
सांगू कसे...?(गझल) |
mamata.riyaj@gm... |
गझल |
मला तुझ्या धर्माची भीती |
अनंत ढवळे |
गझल |
कहाणी |
सुनेत्रा सुभाष |
गझल |
दिसे दिसायास... |
वैभव देशमुख |
गझल |
स्वप्न ज्यात मी नसेन... |
बेफिकीर |
गझल |
श्वास |
पुलस्ति |
गझल |
किती सुखाचे असेल |
क्रान्ति |
गझल |
फार आता फार झाले |
जयन्ता५२ |
गझल |
भीती |
अनिल रत्नाकर |
गझल |
आश्चर्य काय ती ही आनंदली असावी |
मिल्या |