शे(अ)रो शायरी, भाग-८ : कभी नेकी भी उसके जी में गर आ जाये है मुझ से
Posted by मानस६ on Monday, 10 January 2011ही गझल लतादीदी आणि आशाताई ह्या दोघींनीही गायली आहे, आणि फार पूर्वी विविध-भारतीच्या रंग-तरंग ह्या कार्यक्रमात लागायची. मतला बघा, असा आहे-
कभी नेकी भी उसके जी में गर आ जाये है मुझ से
जफ़ायें करके अपनी याद शर्मा जाये है मुझ से