गझल |
एकरूप |
चांदणी लाड. |
गझल |
आस जागी.. |
चांदणी लाड. |
गझल |
जागरण डोळ्यांमधे आता लमाण्यासारखे नाही |
चित्तरंजन भट |
गझल |
एकटा सागरकिनारा एकटा |
चित्तरंजन भट |
गझल |
मुलाहिजा |
चित्तरंजन भट |
गझल |
अदृश्यच असतो क्रूस कधी |
चित्तरंजन भट |
गझल |
वाटले बरे किती! |
चित्तरंजन भट |
गझल |
शहर झाले चांदण्याचे |
चित्तरंजन भट |
गझल |
बोलण्याने बोलणे वाढेल आता |
चित्तरंजन भट |
गझल |
कैफ हा ओसाड का इतका ? |
चित्तरंजन भट |
गझलचर्चा |
छंद, जाती, वृत्त आणि यतिविचार |
चित्तरंजन भट |
गझल |
दिसू लागले स्पष्ट जेवढे |
चित्तरंजन भट |
गझल |
खूप बोलू लागला अंधार नंतर |
चित्तरंजन भट |
गझल |
थांग मनाचा कधी गवसला |
चित्तरंजन भट |
गझल |
इथे प्रत्येक जण धुंदीत आहे |
चित्तरंजन भट |
गझल |
ती जुनी वही दिसली खिळखिळली माझी |
चित्तरंजन भट |
गझल |
मी मिटून डोळे कविता जागत असतो |
चित्तरंजन भट |
गझल |
वाहते चुपचाप आहे खोल पाणी |
चित्तरंजन भट |
गझल |
दुःखाने कुठल्या समुद्र इतका हेलावतो सारखा ? |
चित्तरंजन भट |
गझल |
सांग कोठे माणसा आहेस तू |
चित्तरंजन भट |
गझल |
विषारी केव्हढे वातावरण आहे |
चित्तरंजन भट |
गझल |
कोणत्या चिमटीत मी त्याला धरू |
चित्तरंजन भट |
गझल |
हा प्रवास आधी मुळीच ठरला नव्हता |
चित्तरंजन भट |
गझल |
कोणी |
चित्तरंजन भट |
गझल |
आनंदाने |
चित्तरंजन भट |