गझल |
हे खेळ संचिताचे .....! |
गंगाधर मुटे |
गझल |
हे जीवना तुझी टपरी चालते मला |
बेफिकीर |
गझल |
हे तेच ते दिनरात.. |
केदार पाटणकर |
गझल |
हे फुलांचे उधान झाडांना... |
वैभव देशमुख |
गझल |
हे शहर माझी व्यथा सांभाळते |
प्रसन्न शेंबेकर |
गझल |
हे शहरच आता दिसते... |
मधुघट |
गझल |
हे सुगंधाचे निघाले काफिले! |
मानस६ |
गझल |
हेच असावे सत्य... |
अजय अनंत जोशी |
गझल |
हेच असे असते जगणे... |
अजय अनंत जोशी |
गझल |
हॉटेल पॅराडाइज, पुणे. दि. १९.०१.०९ रात्री ११.३० |
भूषण कटककर |
गझल |
हो गझल गैरमुसलसल आता.. |
बेफिकीर |
गझल |
होकार |
आनंदयात्री |
गझल |
होतीस तू |
अनिल रत्नाकर |
गझल |
ह्या मनाचे, दुश्मनाचे काय करावे ?.... |
खलिश |
गझल |
ह्या कशा उबदार ओळी... |
वैभव जोशी |
गझल |
ह्याहून मोठे अक्रीत काही घडणार नाही |
विजय दि. पाटील |
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१ गझल : प्रसाद शिरगांवकर |
विश्वस्त |
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१ गझल : योगेश वैद्य |
विश्वस्त |
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१ गझल : वैभव जोशी |
विश्वस्त |
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१ गझल : शिवाजी जवरे |
विश्वस्त |
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१ गझल : समीर चव्हाण |
विश्वस्त |
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१ गझल : स्नेहदर्शन शहा |
विश्वस्त |
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१ गझल : स्नेहदर्शन शहा |
विश्वस्त |
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१ गझल: अजब |
विश्वस्त |
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१ गझल: केदार पाटणकर |
विश्वस्त |