गझल |
सहज फिराया आलेला सासरला श्रावण. |
ह बा |
गझल |
बहरता बहरता..... |
ह बा |
गझल |
तुकारामा उगा तू काढली पाण्यातुनी गाथा |
ह बा |
गझल |
चांदण्या लेऊन झाला... |
ह बा |
गझल |
फुलपाखरे |
ह बा |
गझल |
गरीबाला कुठे सांगा कुणाला टाळणे येते? |
ह बा |
गझल |
नाचली काळीज ते पेलीत काही माणसे |
ह बा |
गझल |
ती काळजीत असते... |
ह बा |
गझल |
पाय ओढायला जडतात ती! |
ह बा |
गझल |
जाणिवा विसरून गेलो ..... |
ह बा |
गझल |
पाखरे खाऊन गेली चाळलेल्या वेदना |
ह बा |
गझल |
माझी आई |
ह बा |
गझललेख |
सहज मनापर्यंत पोहोचलेले.... |
ह बा |
गझल |
तिथे ये पहाटे... |
ह बा |
गझल |
भेटाया आल्या गझला, त्याच्या नंतर. |
ह बा |
गझल |
उसवित बसले बूड कवी हे ज्या झोळ्यांचे |
ह बा |
गझल |
जपलेली हळहळ |
ह बा |
गझल |
गेल्यात रे चकोरा बाटून या सरी... |
ह बा |
गझल |
माझ्या मनासी कळेना |
हरीश दांगट |
गझललेख |
मीर तकी मीर ची एक गझल व त्याचे मराठी भाषांतर |
हेमंत पुणेकर |
गझल |
जाळशील का तू? |
ह्रषिकेश चुरी |
गझल |
जरासा त्रास होतो |
ह्रषिकेश चुरी |
गझल |
कुणी इथे |
ह्रषिकेश चुरी |
गझल |
...कुठे बेत आहे? |
ह्रषिकेश चुरी |
गझल |
तुझ्यास्तव..... |
ह्रषिकेश चुरी |