गझल |
बेसुरी सुरुवात... |
जनार्दन केशव म्... |
गझल |
मला ठावुक की... |
जनार्दन केशव म्... |
गझल |
अनोळखी होऊन जगावे.... |
जनार्दन केशव म्... |
गझल |
उधाणलेला समुद्र.... |
जनार्दन केशव म्... |
गझल |
कुणी न समजुन घेतला... |
जनार्दन केशव म्... |
गझल |
देशील मला तू अश्रू.... |
जनार्दन केशव म्... |
गझल |
खरेच राणी... |
जनार्दन केशव म्... |
गझल |
ऎकले आहे तुला ती साथ देते |
जयदीप |
गझल |
रस्ता देतो |
जयदीप |
गझल |
ज्या क्षणी मी थांबलो, ती थांबली |
जयदीप |
गझल |
मनाच्या अडगळीमधले बिलोरी आरसे शोधू |
जयदीप |
गझल |
वरून शांत शांत वाटते किती... |
जयदीप |
गझल |
झोप लागायला पाहिजे |
जयदीप |
गझल |
विचित्र |
जयदीप |
गझल |
मधेच वाहते मधेच थांबते |
जयदीप |
गझल |
एकदा शून्यास माझ्या तू वजा कर... |
जयदीप |
गझल |
तुझ्यासारखे वाचता येत नाही |
जयदीप |
गझल |
शेर तुझ्यावर लिहिला आहे |
जयदीप |
गझल |
नेहमी गर्दी तुला जी लागते |
जयदीप |
गझल |
मन आता हे कळल्यावरती उदास नाही.. |
जयदीप |
गझल |
अनुभव |
जयदीप |
गझल |
सांग कसे ते कण्हतानाही गात असावे... |
जयदीप |
गझल |
आयुष्य खूप गेले, |
जयन्ता५२ |
कार्यक्रम |
काव्यरसिक मंडळ (डोंबिवली) ४४वे वार्षिक स्नेहसंमेलन, रविवार दि. १४ फेब्रुवारी २०१० |
जयन्ता५२ |
गझल |
सोबतीचा आव आहे |
जयन्ता५२ |