..अभंग

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जीवनात  तो  मधाळ  रंग  मागतो,
आजही  मिठी  तशीच  तंग  मागतो..


आजकाल  फार  शांत  वाटते  म्हणे,
हालचाल  ती  जुनी  पलंग  मागतो !


मागतो  कुठे  सरोवरास  मी  तुझ्या?
माझियामुळे  तिथे  तरंग  मागतो..


आठवेल  जो  तुला  सदैव  जीवनी,
आपल्यामधे  असा  प्रसंग  मागतो..


"बंध  पाठचे  कधी  तुटायला  नको.."
मागणे  नभास  हे  पतंग  मागतो


पाहिजे  अशी  नजर, न  कीव  ज्यामधे-
फार  वेगळे  कुठे  अपंग  मागतो?


पार  पाडणार  ब्याद  ही  जगायची,
एवढी  तरी  मनी  उमंग  मागतो..


लेखणे, बुडून  चालली  तुझी  गझल..
जो  तरेल, मी  असा  अभंग  मागतो !


 


 


-ज्ञानेश.
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गझल: 

प्रतिसाद

शेर आवडले...
पाहिजे  अशी  नजर, न  कीव  ज्यामधे-
फार  वेगळे  कुठे  अपंग  मागतो?

पार  पाडणार  ब्याद  ही  जगायची,
एवढी  तरी  मनी  उमंग  मागतो..

लेखणे, बुडून  चालली  तुझी  गझल..
जो  तरेल, मी  असा  अभंग  मागतो !

पतंग = मस्त. अपंग छान. तरंग .. तसा समजला.
सुखाचिये ठायी | दु:खे नांदतात |
अभंग होतात | त्याच पायी ||
अजू म्हणे आता | जोड तू सत्संग ||
सोड तो पलंग | कायमचा ||
कलोअ चूभूद्याघ्या

शुभेच्छा!
- चक्रपाणि जीवन चिटणीस